पपीता की खेती से जुड़े मुद्दे
पपीते का वलय-चित्ती

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प्रमुख बिंदु

पपीते के वलय-चित्ती रोग को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि पपीते की मोजेक, विकृति मोजेक, वलय-चित्ती (पपाया रिंग स्पॉट) पत्तियों का संकरा व पतला होना, पर्ण कुंचन तथा विकृति पर्ण आदि। पौधों में यह रोग उसकी किसी भी अवस्था पर लग सकता है, परन्तु एक वर्ष पुराने पौधे पर रोग लगने की अधिक संभावना रहती है। रोग के लक्षण सबसे ऊपर की मुलायम पत्तियों पर दिखायी देते हैं। रोगी पत्तियाँ चितकबरी एवं आकार में छोटी हो जाती हैं। पत्तियों की सतह खुरदरी होती है तथा इन पर गहरे हरे रंग के फफोले से बन जाते हैं। पर्णवृत छोटा हो जाता है तथा पेड़ के ऊपर की पत्तियाँ खड़ी होती हैं। पत्तियों का आकार अक्सर प्रतान (टेन्ड्रिल) के अनुरूप हो जाता है। पौधों में नयी निकलने वाली पत्तियों पर पीला मोजेक तथा गहरे हरे रंग के क्षेत्र बनते हैं। ऐसी पतियाँ नीचे की तरफ ऐंठ जाती हैं तथा उनका आकार धागे के समान हो जाता है। पर्णवृत एवं तनों पर गहरे रंग के धब्बे और लम्बी धारियाँ दिखायी देती हैं। फलों पर गोल जलीय धब्बे बनते हैं। ये धब्बे फल पकने के समय भूरे रंग के हो जाते है। इन रोग के कारण रोगी पौधों में लैटेक्स तथा शर्करा की मात्रा स्वस्थ्य पौधों की अपेक्षा काफी कम हो जाती है ।

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